"कामिनी एक अजीब दास्तां" 5000 वर्ष पहले संसार में संसार तो था पर संसार का पूर्ण स्वरूप केवल भारत में ही था, उसी समय दक्षिण भारत में कामपुर नाम का एक प्रसिद्ध नगर था जिसकी गणिकाए (वेश्याएं) विश्व भर में प्रसिद्ध थी। जहां राजा, महाराजा, सम्राट, सेनापति, मंत्री, युवराज, और धनी लोग अपनी वासना को शांत करने और आराम करने के लिए कामपुर आते थे और यहां की गणिकाओ को मुंह मांगा मूल्य देते थे। चंद्रवती नाम की अत्यंत सुंदर स्त्री कामपुर की गणिका प्रमुख थी उसकी एक बेटी भी थी, जिसका नाम कामिनी था, कामिनी अद्भुत सुंदर थी, जो भी कामिनी को देखता था वह उसी क्षण उस पर मोहित हो जाता था पर कामिनी सिंधु देश के राजा माणकराव से अत्यंत प्रेम करती थी मानक राव भी कामिनी को अपने प्राणों से अधिक प्रेम करता था, बचपन के इसी प्रेम के कारण कामिनी गणिका पुत्री होने के बाद भी स्वयं को किसी को छूने तक नहीं देती थी कामिनी को केवल माणकराव के 20 वर्ष के होने का इंतजार था, क्योंकि माणकराव के कुल में केवल 20 वर्ष का युवक ही विवाह कर सकता था, माणकराव प्रतिवर्ष बसंत ऋतु में 2 महीने के लिए कामपुर पर आता था। इसीलिए कामिनी प्रतिदिन आकाश मैं बादलों को देखती है, क्योंकि वही उसके प्रीतम का संदेश लेकर आते हैं। उम्मीदों के सहारे कामिनी बड़ा सुखद जीवन व्यतीत कर रही थी पर एक दिन उसे अपनी यह उम्मीद खत्म होती नजर आई। सिंधु देश से माणकराव की एक रात्रि नाम की दासी संदेश लेकर कामिनी के पास आती है और कहती है, "मैं सिंधु नरेश की दासी रात्रि हूं, उन्होंने मुझे आजीवन आपकी सेवा में भेजा है और साथ में यह संदेश भी दिया है कि आप उनकी प्रतीक्षा हमेशा के लिए त्याग दें, क्योंकि उन्होंने अपने कुल गुरु, सामन मुनि से दीक्षा लेकर सन्यास ग्रहण कर लिया है"। यह सुनकर कामिनी के सारे अरमान चकनाचूर हो जाते हैं उसे अपना जीवन व्यर्थ लगने लगा है, क्योंकि पहले तो उम्मीदों का सहारा था अब तो वह भी नहीं रहा। कामिनी इस सदमे से बाहर निकली ही नहीं थी कि उस पर एक और पहाड़ टूट पड़ता है, एक रात उसकी मां की रहस्यमई ढंग से हत्या कर दी जाती है।