उपन्यास मानव जीवन की गतिविधियों का जीवंत दस्तावेज है। उत्कृष्ट प्रभावित एवं मानवीय रूप से बुना गया कथानक उपन्यास का प्राण तत्व होता है। वर्तमान समय के आपाधापी भरे माहौल में बड़े उपन्यासों की अपेक्षा लघु उपन्यासों का चलन बढ़ा है। इसी बात को ध्यान में रख कर उदीयमान उपन्यासकार अमिताभ श्रीवास्तव का सर्वथा मौलिक एवं अभिनव प्रयास है 'लोटन बाबा'। 'लोटन बाबा' का कथानक सरल, सहज, गतिशील एवं जिज्ञासा पूर्ण है। उपन्यासकार ने इस उपन्यास में ग्रामीण, क्षेत्रीय, कस्बाई एवं कहीं कहीं नगरीय मानसिकता को जोड़कर राजनीति, गाँव, समाज, परिवार सभी के परिदृश्य प्रस्तुत किए हैं। उपन्यास का आरंभ अत्यंत रोचक एवं बतकही शैली में होता है। लोटन बाबा का वास्तविक नाम तो था -संतोष। बाबूलाल पटवारी के बेटे संतोष के लोटन बाबा बनने की कहानी पर टिका यह उपन्यास रोचक होने के साथ ही प्रभावोत्पादक भी है। निठल्ले, निकम्मे और पिता का सिरदर्द किन्तु माँ के लाड़ले संतोष आम लड़कों जैसा ही फैशनेबल है। मित्र की सायकल पंचर की दुकान पर एक युवती से साक्षात्कार होता है और संतोष भाई उसे दिल दे बैठते हैं। फिर शुरू होता है उसे देखने, मिलने का प्रयास। सफलता न मिलने पर वह ग्रामीणों की आस्था के केंद्र बच्चू बाबा की शरण में जाते हैं। और चूंकि बच्चू बाबा स्वयं भी कभी प्रेमरोगी रह चुके हैं अतः वह संतोष भाई को सहर्ष शिष्यत्व प्रदान कर देते हैं। और अपनी स्वार्थ साधना के लिए उन्हें लुढ़कने की क्रिया हेतु प्रेरित करते हैं। 'अंधा क्या चाहे दो आँखे' संतोष भाई भी सोचते हैं कि लुढ़कने से शायद उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाए। इधर बच्चू बाबा सूखाग्रस्त गाँव वालों को लुढ़कन क्रिया द्वारा पानी बरसने का आश्वासन दे देते हैं। और इस तरह उपन्यास आगे बढ़ता है। इस कथानक में अन्य सहयोगी सरपंच, नगरपालिका अध्यक्ष और गौहर दादा आदि हैं। सभी के सहयोग, बच्चू बाबा की प्रेरणा और पंकजा के आकर्षण में बंधे संतोष भाई लुढ़कने की क्रिया हेतु स्वयं को तैयार कर लेते हैं। बीच -बीच में अनेक घटनाएं होती है, यहां बच्चू बाबा द्वारा आस्था के नाम पर भोले भाले ग्रामीणों को कैसे दिग्भ्रमित किया जाता है इसे स्पष्ट करती है। संतोष भाई का आकर्षण एकतरफा नहीं था। युवती पंकजा भी इनके प्रेमपाश में बंध जाती है। संतोष भाई की सरलता, सहजता और सेवा भाव की वह कायल हो जाती है। अब लुढ़कने की क्रिया में वह भी पूर्ण सहयोग करते हुए संतोष को मनोबल एवं प्रेरणा देती है। अंततः भरी गर्मी में संतोष भाई के लुढ़कने की क्रिया से चमत्कारिक ढंग से बादल छा जाते हैं, खूब बारिश होती है। गाँव वालों को बच्चू बाबा और लोटन बाबा पर पूरा विश्वास हो जाता है। इस पूरे घटनाक्रम के साथ और बाद में संतोष भाई का प्रेम मानवता, त्याग एवं परोपकार के विस्तृत फलक पर छा जाता है और व्यष्टि से समष्टि की ओर अग्रसर हो जाता है। पानी बरसने की क्रिया गाँव वालों का विश्वास देखकर बरबस 'गाइड' फिल्म की याद ताजा हो जाती है।