‘धूप में तलाश छाँव की’ मेरी प्रतिनिधि कहानियों की किताब है। इन कहानियों के सजृन के दिनों मुझे अनाम पात्रों की दारूण और यंत्रणामय जि़न्दगी की हौलनाक सच्चाइयों से दो-चार होना पड़ा था। मेरी यह कहानियाँ हाशिए से बाहर जीवन-यापन करने वाले आम आदमी के मरते सपनों की गवाही भी देती हैं...और...उनकी यातना की शिनाख़्त भी करती हैं।
मुझे इस बात का फख्ऱ है कि यह कहानियाँ देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ‘हंस’, ‘परिकथा’, ‘कथादेश’, ‘शिखरवार्ता’, ‘कथाबिम्ब’, ‘आधारशिला’, ‘कथाक्रम’ तथा ‘इरावती’ पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। इन कहानियों में आम आदमी के छीजते सपनों पर अपनी संवेदना की मरहम लगाने का प्रयास मात्र हैं जिनमें कहीं तो हस्पताल के मुर्दाघरों में शवों की चीरफाड़ करने वाले चौथा दर्ज़ा कर्मचारी की मानसिक तड़न है...तो कहीं आतंकवाद के दिनों किसी बस में विस्फोट हो जाने की त्रासदी और मरती हुई मानवता का क्रूर रूप है...कहीं रोटी-रोजी के लिए अपने बदन को आग लगाकर टॉवर से छलांग लगाने वाले एक शख़्स की गाथा है...तो कहीं मुर्दागाड़ी में मृत देहों को संस्कार के लिए लेकर आने वाले श्रापित वैन चालक की जि़न्दगी के ख़ाके दर्ज हैं...तो कहीं रेलवे के लावारिस यार्डों में जि़न्दगी बसर करते टप्परवास लोगों की यातना दर्ज है...जिनको हर क्षण विस्थापन का दंश झेलना है...कहीं बंदर-बंदरिया का तमाशा दिखाने वाले शख़्स को लोगों के शोषण करने को बाध्य होना है...लेकिन...उसके भीतर एक ईमानदार शख़्स अभी मरा नहीं है। बहरुपियों की जि़न्दगी का भीतरी दर्द भी कहीं विद्यमान है...तो कहीं सरकारी दफ़्तर के दर्जा चार के कर्मचारी को शराब की लत के कारण मसखरा बनना है...तो कहीं रोटी-रोजी के लिए उन छोकरों को अपने मालिक के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ता...ठर्रा बेचने वाले अड्डों को तलाशते वे छोकरे मात्र चार पैसों के लिए अपनी जि़न्दगी से खिलवाड़ करने को विवश हैं।
कुल मिलाकर सारांश में इन कहानियों की सच्चाइयों से रू-ब-रू होते हुए पाठक जन इन कहानियों की ताकत को जानने का प्रयास करेंगे...ऐसी कामना और विश्वास रहेगा।