“सविता ताई सें जब मैं पहली बार मिली तब वह अपने शिष्यों को नृत्य सिखाने में व्यस्त थी। मैंने अपनी भांजी वैदेही रावेरकर से ताई के जीवन, उनके कथक प्रेम के बारे में बहुत कुछ सुना था। उनका आत्मकथन लिखते हुए मैं उनकों जैसे जैसे जानती गई, समझती गई वैसे उनका आदर स्थान मेरे मन में और ऊँचा होता गया। सविता ताई एक निश्चय है, एक स्त्री का, जो वह चाहती है वह पाने का। केवल एक स्त्री के रूप में नहीं एक व्यक्ति के रूप में भी स्वयं को साबित करने का। स्वयं में निहित ऊर्जा के रूप को जानने के लिए, उसे समझ कर उसे एक साकार रूप देने के लिए है। वह रूप साकार करने के लिए है, जिसके लिए आत्मा ने शरीर को धारण किया है। उत्साह से भरी, जीवन ऊर्जा का प्रवाही रूप मतलब सविता ताई। मैं उनकों एवं आदित्य दादा को धन्यवाद कहना चाहुंगी । आत्मकथन लिखते हुए एक शानदार व्यक्तित्व से परिचय करवाने के लिए। यह पुस्तक समर्पित है “अनुभव” इस शब्द के लिए, जो पुरा जीवन स्वयं में समेटे है।” - सौ. मीनल आनंद विद्वांस