मिट्टी से घड़े बनाने वाले मनुष्य ने हजारों वर्षों में अपना भौतिक ज्ञान बढाकर उसी मिट्टी से यूरेनियम छानना भले ही सीख लिया हो, परन्तु उसके मानसिक विकास की अवस्था आज भी आदिकालीन है ।
काल कोई भी रहा हो - त्रेता, द्वापर या कलियुग । मनुष्य के सदगुण और दुर्गुण युगों से उसके व्यवहार को संचालित करते रहे हैं । यह गाथा किसी एक विशिष्ट नायक की नहीं, अपितु सभ्यता, संस्कृति, समाज, देश-काल, निर्माण तथा प्रलय को समेटे हुए एक सम्पूर्ण युग की है । वह युग, जिसमें देव, दानव, असुर एवं दैत्य जातियां अपने वर्चस्व पर थीं । यह वह युग था, जब देवास्त्रों और ब्रह्मास्त्रों की धमक से धरती कम्पित हुआ करती थी ।