नमस्ते सभी को, मै प्रज्ञा हंसराज बागुल, कसारा, ठाणे, महाराष्ट्र से मेरी प्रथम काव्यधारा मेरे पिता को समर्पित करती हू I मुझे बहोत ख़ुशी हो रही है I मेरे पिता भी एक कवी थे I कोरोना के भयानक काल मे उनका देहांत हो गया I उन्होने मुझे जीवन जीने की कला सिखाई I लेखन एक कला साधना है I ऐसा हमेशा बताया I मनुष्य ही अपने जीवन का शिल्पकार है I जो दूसरो के लिये जीता है I वही आदमी है I जो खुद के लिये जीता है I उसे आदमी नही कहते है I उन्होने हमेशा सादगी भरा जीवन पसंद किया I आदमी हमेशा सुख की तलाश करता है I सभी को सुख चाहिये I लेकिन दुख किसी को नही चाहिये I यही कारण आत्मविनाश का है I ऐसी सीख उन्होने दी I मुझे उनकी एक गझल बेहद पसंद है I गंगा से तापी तक भारत एक है I