मेरी प्रिय कहानियाँ " प्रस्तुत करते हुये खुशी का अहसास हो रहा है कुछ समस्याएं ऐसी होती है जो कभी भी खत्म नही होती दूसरे शब्दों में कहा जाये अंतहीन समस्याएं गरीबी/मंहगाई/बेरोजगारी/हर समय काल में है जब से होश सम्भाला है बस यही सब देख सुन रहा हूँ गरीबी हटाओ देश बचायों " के नारे सत्र के दशक ( उस से भी पहले) से लग रहे हैं और आज पचास वर्ष के पश्चात भी यही सब कुछ हो रहा है मंहगाई बेरोजगारी आत्महत्याएं आज भी अखबारों की सुर्खियां बनती है आज भी नेताओ के चुनावी भाषणों में इन्ही बातों को स्थान दिया जा रहा है | कहानियाँ वही कालजयी बनती है जो जिन्दगी से जुड़ी होती है ( यहां मैं अपनी कहानियों को काल जयी नहीं कह रहा यह तो पाठक तय करते है) हां यह सच है कि लोग ऐसी जिन्दगी भी जीते थे और आज भी यह वर्ग ऐसी जिन्दगी जीने के लिए मजबूर है हम इस सच्चाई पर पर्दा नहीं डाल सकते| यह कहानियाँ अपने समय में विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है कुछ कहानियाँ मेरे कहानी सग्रह अंतहीन में भी शामिल की गई थी इस को फिर से शामिल करने का उद्देश्य सिर्फ यही है कि इन समस्याओं से हम पचास वर्ष पहले भी जीते थे और आज भी जी रहे हैं यह समस्याएं अंतहीन है | अपनी कहानियों के संबंध में अधिक न लिखते हुये यह उत्तर दायित्व पाठकों के लिए.. :| इस विश्वास के साथ कि आप का स्नेह / प्यार/ आशीर्वाद इस पुस्तक को मिलेगा और आप की प्रतिक्रिया का भी इंतजार रहेगा | अंत में शापिज़न और हिन्दी विभाग प्रमुख प्रमुख प्रगति दाभोलकर जी का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया | धन्यवाद और शुभकामनाओं के साथ