घर से निकलते-निकलते बलजीत को साढ़े ग्यारह बज गये थे। जोधोवाल बस्ती से उसका लुधियाना रेलवे स्टेशन 5 किलोमीटर की दूरी पर था। दिसम्बर का आखिरी सप्ताह चल रहा था। सर्दी पूरे यौवन पर थी। इसलिए उसने गर्म कपड़े पहनकर, ओवरकोट भी पहन लिया था। सिर पर हैट पहन कर वह घर के सदस्यों को बाय-बाय कहकर सड़क पर आ गया था। अंधेरी रात में भी बिजली की बत्तियाँ जगमग कर रही थीं। सूटकेस हाथ में पकड़े वह सड़क पर आ गया था। उसे दिल्ली के लिए रेल गाड़ी पकड़नी थी। वहां से 10 बजे उसने आस्ट्रेलिया के लिये फ्लाइट पकड़नी थी।
आस्ट्रेलिया में उसका भाई सुरजीत रहता था। उसे वहां की सम्पूर्ण नागरिकता मिल गई थी। उसने एक आस्ट्रेलिाई गोरी युवती से शादी भी कर ली थी। उनका एक बेटा भी था जो अभी दो वर्ष का था। सुरजीत ने बलजीत के कोरोना ख़त्म होने के बाद अपने पास बुलाया था। रात के 12 बज रहे थे, गाड़ी छूटने में अभी एक घंटे का समय शेष था। वह किसी ऑटोरिक्शा के आने का इंतज़ार कर रहा था। अचानक एक रिक्शा उसके समीप आकर रुका। उसको एक 25 वर्षीय युवक चला रहा था। उसके बदन, कमीज़, कुर्ता और एक स्वेटर भी जो स्थान-स्थान से फटी हुई थी। कड़ाके की सर्दी में उसके पहरावे को देखकर बलजीत हैरान रह गया था।
उस युवक ने रिक्शे को खाद करते हुए पूछा...‘कहां चलना है बाबू जी...? बैठो रिक्शे में ले चलता हूँ...’
‘मैं ऑटोरिक्शा में जाऊँगा...रेलवे स्टेशन जाना है...यहां से काफी दूर है, आप देर कर दोगे...’
‘बाबू जी ऑटोरिक्शा वाला कम से कम 100 रुपए किराया लेगा...मैं पचास में ले जाऊँगा...बेफिक्र होकर बैठिए...मैं आपको आधे घंटे से पहले पहुँचा दूंगा...’
बलजीत ने कुछ देर सोचा। ऑटोरिक्शा भी कोई नज़र नहीं आ रहा था। हिचकिचाते हुए वह रिक्शे पर बैठ गया था।
‘कहां के रहने वाले हो...? बोली से तुम पंजाब नहीं लगते...’ बलजीत ने रिक्शे वाले से पूछा।
‘मैं बिहार का रहने वाला हूँ...बिहार से हम दो जने आए थे...बिहार में मजदूरी कम है इसलिए हम यहां लुधियाना चले आये थे...’
‘बिहार में कहां रहते हो...?’ बलजीत ने पूछा।
‘पटना से पन्द्रह किलोमीटर की दूरी पर चिरगांव स्थित है...हम सारा परिवार वहां ही रहते हैं...’
‘घर में कौन-कौन है...?’ बलजीत ने पूछा।
‘साहब जी एक बूढ़ी माँ है, बाप है और एक बहन है जो मुझ से उम्र में छोटी है...’‘शादीशुदा हो...?’ बलजीत ने पूछा।
‘साहब जी शादीशुदा भी हूँ और कुंवारा भी...’
‘यह कैसा उत्तर है...?’ बलजीत ने आश्चर्य से पूछा।
‘साहब जी एक लम्बी कहानी है...आप क्या करोगे जानकर...’ इतना कहते हुए उसका गला भर आया था।
बलजीत की जिज्ञासा बढ़ गई थी। वह उसके बारे में जानना चाहता था। इसलिए उसने दोबारा बड़े विनम्र स्वर में कहा...‘क्या आपकी पत्नी मर गई है, जो तुम अपने आपको कुंवारा कहते हो...’
‘नहीं बाबू जी ऐसा नहीं है...’
‘फिर क्या है...बताओ तो जानू...’ बलजीत ने उसकी रूआंसी शक़्ल को देखते हुए कहा।
‘बाबू जी अगर आप ज़िद्द कर रहे हैं तो बताता हूँ गौर से सुनिए...’