बचपन से ही मुझे साहित्य के प्रति लगाव रहा है। परम आदरणीय श्री निराला जी, प्रसाद जी, महा देवी वर्मा जी सहित अनेक गणमान्य साहित्यकारों की रचनाएं पढ़कर बहुत ही प्रेरित होकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का प्रयास किया है। सामाजिक आर्थिक विषमताओं से आहत होकर, स्त्रियों के प्रति समाज के दृष्टिकोण को लेकर काफी मर्माहत हुआ हूं। आशा है कि मेरी इस कृति को हिन्दी भाषा के पाठक वर्ग हृदय से स्वीकार करेंगे और मेरी भावनाओं को समझने का प्रयास करें गे। यदि मेरी कविता में किसी भी व्यक्ति को किसी प्रकार का कोई दोष नजर आए तो मुझे अवगत कराएं मैं इस हेतु तहे दिल से क्षमा चाहता हूं।