मेरे प्रथम काव्य-संग्रह " दुनिया बदल दो " को प्रकाशित हो जाने के बाद शेष रचनाओं को दूसरी काव्य-संग्रह " हर जुल्म मिटा दो " के नाम से प्रकाशित करवाने की अभिलाषा मेरे मन में आई।मेरे इस काव्य संग्रह का भी उद्देश्य वही है जो पहले की है।हर भेदभाव को मिटाना,शोषण-मुक्त व्यवस्था के स्थापना के लिए वर्ग-चेतना उत्पन्न करना यही क्रांतिकारी उद्देश्य से मैं इस काव्य-संग्रह की लगभग सभी काव्य को रचा हूँ।
मैं जब छात्र जीवन में था तब भी मेरे पढाई का उद्देश्य नौकरी या ऊँची ओहदा प्राप्त करना नहीं था।आज जब मैं कविताओं को लिख रहा हूँ तो इसका उद्देश्य भी धन अर्जित करना या अपनी विद्वता साबित करना नहीं है।मैं पढ़ाई किया एक अच्छा इंसान बनने के लिए और मैं कविता लिख रहा हूँ हर जुल्म को मिटाकर दुनिया बदलने के लिये।
आज मानव जाति,धर्म, भाषा, क्षेत्र और नस्ल आदि के आधार पर बंटा हुआ है जो हमारे मानव समाज के विकास के लिए बहुत बड़ा खतरा है।जबतक मानव इसतरह के भेदभाव में जीता रहेगा तबतक मानव को सभ्य कहलाने पर भी प्रश्न-चिन्ह खड़ा होता रहेगा।अतः इन भेदभावों को मिटाना अति आवश्यक है।मैं समझता हूँ आज के हालात में यथार्थवादी कविताओं का इस दिशा में महती भूमिका हो सकती है।इन ख्यालों को ध्यान रखते हुए मैं अपने मन के अंतः बेदना को कविता के माध्यम से प्रकट कर रहा हूँ।