एक सैनिक जब सीमा पर होता है तब उस के मन की दशा को समझना आसान नहीं होता । एक तरफ मातृभूमि की रक्षा करना प्रमुख ध्येय रहता है, वहीं घर पर प्रतीक्षा करती जन्मदायिनी माँ की याद और सहधर्मिणी को दिए वचनों को पूर्ण करने का दायित्वबोध भी
नित्यानन्द वाजपेयी जी के काव्य में उक्त भावनाओं का ज्वार देखने को मिलता है। यह मात्र नित्यानन्द जी की रचनाएँ ही नहीं हैं, यह प्रत्येक सैनिक का स्वर है। वास्तव में नित्यानन्द जी का काव्य भारतीय सैनिक का प्रतिनिधित्व करता है।
जहाँ उनके कोमल हृदय में प्रेम का नवांकुर देखा जा सकता है वहीं एक दृढ़ प्रतिज्ञ सैनिक की छवि उनके काव्य में दृष्टिगोचर होती है। शारदे वंदना, कृष्ण भक्ति काव्य, हनुमत स्तवन उनके आध्यात्मिक संस्कारों की पुष्टि करता है वहीं राष्ट्र चेतना की रचनाएँ पठनीय हैं।
कश्मीर की घाटी में कश्मीरी पंडितों की पुनः वापिसी के प्रति आशान्वित कवि कह उठता है।
वेदों की ऋचा वादियों में गुंजायमान पल पल होगी।
गीता गायन से अनुकीर्तित, झरनों की हर कल कल होगी।।