माई री! सुना है कई वर्ष बीते,
पर मैं खड़ी हूं जहां मैं खड़ी थी।
कंधे पर रहती थी,मैं बोझ बनकर,
बापू थे थकते, मुझे ढो ढो कर।
दहलीज पर फेंक आते किसी के,
यह गठरी सिमट रह जाती थी रोकर।
परवश प्रताड़ित मैं हरदम यहाँ थी।
मैं तो खड़ी हूं खड़ी मै जहां थी॥1॥
बापू ने उठते इन हाथों को देखा,
दर्द का सैलाब आंखों में देखा।
परेशां हुए कुछ ऐसे मां बाबा,
दबाया गला, बोले, बेटीऽ नाऽ तौबा।
पराई हूं मैं, तब भी अपनी कहां थी।
मैं तो खड़ी हूं खड़ी मैं जहां थी॥2॥