"जनमुक्ति जरूरी है" नामक पुस्तक को मैं साहित्यप्रेमियों, क्रांतिकारियों एवं प्रगतिशील लोगों सहित सभी पाठकों के लिए समर्पित करते हुए अपार हर्ष महसूस कर रहा हूँ। आशा है हमारी यह पुस्तक क्रांतिकारी उद्देश्यों को पूरा करने में एवं जनमुक्ति का माहौल बनाने में सहायक सिद्ध होगी।आज हम आजाद भारत में रह रहे हैं किन्तु आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी हम अपने देश के महान स्वतंत्रता सैनानियों के सपने का भारत आज भी नहीं बना सके हैं। आज भी इस देश में शोषण, जुल्म, भेदभाव, भुखमरी, बेरोजगारी और मँहगाई जैसी अनेकों समस्या है जो नित्य विकराल से विकराल रूप धारण करती जा रही है। मैं गर्व से कहता हूँ मेरा मुल्क आजाद हो गया है लेकिन जो हमारे सामने समस्याएँ मुँह वाये खड़ी लहैं वह जनमुक्ति की माँग कर रही हैं। चंद लोगों के हाँथों में अकूत सम्पत्ति का संकेन्द्रण हो चुका है जबकि दूसरी ओर विशाल जनसंख्या बेरोजगारी और भुखमरी झेल रही है। ऐसी अन्यायपूर्ण पूँजीवादी व्यवस्था पर सवाल उठाना मैं समझता हूँ कि आज तमाम प्रगतिशील लोगों का उत्तरदायित्व है।हम रचनाकारों पर इसकी और भी जिम्मेदारी है। किसी भी रचनाकार का उत्तरदायित्व होता है कि वह हर तरह के अन्याय के विरुद्ध अपनी आवाज को लेखनी के माध्यम से प्रकट करे और आम जनता को जागृत करते हुए जनमुक्ति संग्राम में अपना सक्रिय योगदान दे।जनमुक्ति का आज मात्र एक ही उपाय है इस पूँजीवादी व्यवस्था के अन्त के लिए क्रांतिकारी वैज्ञानिक विचारों को आगे बढ़ाना एवं क्रान्ति करते हुए साम्यवाद की स्थापना करना।