प्राचीन आर्य समाज में ‘जानि’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है जन्म देने वाली। आगे चलकर उसे ही बदलकर ‘जननी’ शब्द बना दिया गया।
परिवार के दो स्तम्भ होते हैं- पुरूष और नारी। उन्हीं के संयुक्त प्रयास से परिवार बनते और चलते हैं, किन्तु परिवार की सुव्यवस्था का उत्तरदायित्व नारी के कंधें पर ही आता है। परिवार के लिए नारी शक्ति स्वरूपा है। घर-परिवार का पूरा वातावरण उसी के आचरण पर निर्भर करता है। नारी जन्मदात्राी है। बच्चों का प्रजनन ही नहीं, पालन-पोषण भी उसके हाथ में है। माता के द्वारा बच्चों को जो संस्कार बचपन में दिए जाते हैं वे जीवन भर उनका मार्गदर्शन करते रहते हैं। जैसे- शिवाजी की माता जीजाबाई ने शिवाजी को एक योग्य रूप में स्थापित किया और आगे चलकर इसी रूप में वे विख्यात हुए। लेकिन शिवाजी के पिता मुस्लिम शासकों के प्रभाव में होने के कारण ऐसा नहीं करना चाहते थे। घर प्रथम पाठशाला है बालक के लिए और माता उसकी प्रथम शिक्षक है। नारी जन्मदात्राी है। समाज का प्रत्येक भावी सदस्य उसकी गोद में पलकर संसार में खड़ा होता है। उसके स्तन का अमृत पीकर पुष्ट होता है। माँ की हंसी से हंसना और माँ की वाणी से बोलना सीखता है। उसके स्नेह के जल से सींचकर पोषित होता है और उसी से अच्छे-बुरे संस्कार लेकर अपने जीवन की दिशा बनाता है।
नारी के समुचित सहयोग से ही संतान के साथ ही पति एवं परिवार के वातावरण का निर्माण करती है। परिवार के स्तर एवं वातावरण को बनाने में सुसंस्कृत नारी की ही भूमिका होती है। परिवार के अन्य लोग उसके सहायक या सहयोगी मात्रा ही हो सकते हैं, निर्णायक नहीं नारी घर में उसकी सुख सुविध का प्रबन्ध् करती है । आज सर्वत्रा भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, बेईमानी फैली हुई है। मां, बहन और पत्नी चाहें तो इन बुराईयों को समूल नष्ट कर सकती है। परिवार सुसंस्कृत होगा तो समाज स्वयं ही सुध्र जाएगा।
शिक्षा सफलता की कुंजी है। बिना शिक्षा के जीवन अपंग है। यदि नारी शिक्षित होगी तो वह अपने परिवार की व्यवस्था ज्यादा अच्छी तरह से चला सकेगी। एक अशिक्षित नारी न तो स्वयं का विकास कर सकती है और न ही परिवार के विकास में सहयोग दे सकती है। सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि महिलाओं को घर का काम, बच्चों का पालन-पोषण ही करना है तो महिलाओं के लिए शिक्षा की कोई आवश्यकता नहीं है। शिक्षा की कमी के कारण महिलाएं परिवार नियोजन जानकारियों को समझ नहीं पाती हैं जिसके कारण गर्भावस्था व प्रसूति के समय अनेक बीमारियां का शिकार हो जाती हैं। शिक्षा के अभाव में स्वयं के पोषण पर ध्यान नहीं दे पाती हैं।