विश्व पर्यावरण दिवस की सभी को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं लेकिन इस बधाई के पात्र हम सभी सही मायने में तभी होंगे, जब हम अपने पर्यावरण का संरक्षण कर पाएंगे, उसे बेहतर से और बेहतर कर सहेज कर अगली पीढ़ी तक ले जा पाएंगे।
विश्व पर्यावरण की सुरक्षा व संरक्षण हेतु पूरे विश्व में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस इसलिए मनाते हैं, जिससे कि लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक हो सके और इसकी सुरक्षा व संरक्षण करें।
इसको मनाने का ऐलान 1972 में संयुक्त राष्ट्र ने पूरी दुनिया मे पर्यावरण के प्रति सजगता लाने के लिए किया था।
5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विश्व पर्यावरण सम्मेलन के बाद पहली बार 5 जून 1974 को मनाया गया।
प्रकृति हमें एक मां की तरह सब कुछ निस्वार्थ देती है, हवा पानी खाध पदार्थों के बिना हम मानव जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।प्रकृति से हमें सब कुछ मिला प्रकृति मां वसुंधरा बनकर इंसान का भरण पोषण करती रही, लेकिन इंसान ने क्या किया...
आज कोरोना समय में समझ मे आया कि पानी तो कब से बोतल बंद हो ही गया था, आज सांस लेने के लिए भी ऑक्सीजन सिलेंडर के मोहताज हो गये हम।
क्या प्रकृति ने कभी हमसे इन सब चीजों का मूल्य चाहा... नहीं ना... लेकिन हम इसके साथ खिलवाड़ करते रहे ,प्रकृति को नष्ट करते रहे, भौतिकता के पीछे भागते रहे,भागते भागते जल जंगल जमीन को खोखला कर नष्ट कर दिया।
लेकिन ये बात इंसान को अब समझनी ही होगी...
यदि जल जंगल जमीन को हम बचा पाएंगे,
तभी मानव संस्कृति की हम रक्षा कर पाएंगे।
हमारे विष्णु पुराण में बताया गया है कि दस कुओं के बराबर एक बावड़ी होती है, और दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, और दस तालाबों के बराबर एक पुत्र और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है ....इसलिए हमारे धार्मिक ग्रंथों में हर वृक्ष को ईश्वर तुल्य माना गया है, हर वृक्ष की अलग-अलग महत्ता दर्शाने के लिए अलग-अलग देवी-देवताओं के रूप में इन्हे पूजा जाता है।