मैं इस सम्पादकीय की विषय वस्तु को, राष्ट्रीय स्तर की भूमिका देने के लिए उत्प्रेरित, काव्य कलात्मक क्षेत्र में एक पावन स्थान सुरक्षित रखने वाली पत्रिका, कविता-कानन की गरिमा को ध्यान में रखते हुए, साहित्य के विषय में वैचारिक निबंध के रूप में ही प्रस्तुत करना चाहती हूँ।
काव्य-साहित्य ही वह क्षेत्र हैं जो मनुष्य को परमार्थ, समाज सेवा, करुणा, मानवीयता, सदाचरण तथा विश्व बन्धुत्व जैसे उदात्त मूल्यों का अनुसरण करना सिखाता हैं। . संस्कारवान व्यक्ति/कवि वही हैं जो ह्रदय से उदार हो,निष्कपट व्यवहार करने वाला हो तथाअपने लिए किसी प्रकार के लोभ लालच की अपेक्षा ना करता हो. साहित्य सदैव ऐसे ही महान मानवीय मूल्यों की रचना करता है जो प्राणिमात्र के सुखद जीवन की कल्पना करते हों |
तुलसी ने अपनी प्रसिद्ध रचना रामचरितमानस में ऐसी अनेक सूक्ति परक चौपाइयों की रचना की है जो व्यक्ति तथा समाज को सीधे -सीधे निर्देश करती हैं ,जैसे
"का वर्षा जब कृषि सुखाने" "कर्म प्रधान विश्व करि राखा" .
प्रश्न है कि सदी २१ के मध्य की ओर ले जाने वाले भारतीय कवियों से किस भाव प्रवाह से जुड़ने और किस वृत्ति से साहित्य सेवा में तत्पर होने की अपेक्षा की जाती है।