माँ-बाप की ओर से लालन पालन, मेरे माता पिता ने मुझे जन्म देकर इस काबिल बनाया की मैं अपने आप को समाज में पेश कर सकूं, पुस्तक की पृष्ठभूमि पर एक नजर डालें तो, जब मेने लिखना सोचा तो, मेरे मन में ये खयाल आया कि किसी भी कार्य की शुरुआत सरस्वती साधना से होनी आवश्यक है, तो पहली संपादित पुस्तक माता पिता को समर्पित करके मेरी ओर से उनके परवरिश का ॠण अदा हो सके।
जब मेरी सोच को मैंने शब्द के रूप में ढालना सोचा, तब मुझे ये लगा कि इसमें अधिक लेखको की राय/विश्लेषण और उनकी सोच को भी जोड दूं। फिर मैंने 25 लेखको को इसमें शामिल किया। सबने अपने तरीक़े से कथाएं जोड़ी, मनोविज्ञान की पृष्ठभूमि पर रची ये पुस्तक सही अर्थ में बच्चों की ओर से माता पिता को दिया हुआ एक अमुल्य उपहार है। माता पिता की परवरिश बच्चो के लिऐ अद्रृतय आशीर्वाद है।
आपकी भाषा/व्यवहार/ व्यक्तित्व ये तय करता है कि आपका व्यक्तित्वमत्ता बहुत ही स्पर्शिला है। ये बात पुरे समाज में, बड़े शौक के साथ कहनी पडती है की वर्तमान जीवन में जगह-जगह बात प्रसिद्ध हो रही है। मुझे लगता है कि पीढ़ी की दूरियां इसमे महत्व रखती हैं। आज की पीढ़ी self centered हो रही है। उसको अपना रास्ता खुद ही तय करना है। खुद के परिवेश में किसी ओर को दाखिल करने की उसकी तैयारी नही है। एकल परिवार के कारण परिवार का स्नेह और बुजुर्गो के प्रति आदर भावना पूरानी बात बन रही है। इस समय ये बात समझनी होगी कि अपने को किसी और में ढालना छोड दो। बुजुर्गों का सम्मान करें ये बात ही बहुत है। इज्जत देने का बर्ताव कभी भी सलाह देने से नहीं आता, ये आपस के लगाव से पैदा होता है, फिर बच्चे वही करते हैं, जो वो खुद मह्सूस करता है, अपने को ही महत्वपूर्ण बना दो की आपके बच्चे आपका अनुकरण करने में अपनी शानो शौकत महसूस करे।