श्री रमेशराज बहुआयामी रचनाकार हैं, चर्चित तेवरीकार हैं और तेवरी-आन्दोलन के प्रखर उन्नायक भी । उन्होंने कहानी, लघुकथा, निबन्ध, व्यंग्य, हाइकु आदि के क्षेत्र में भी अपनी रचनाधर्मिता का परिचय दिया है। उनकी चार सम्पादित कृतियाँ ‘ अभी जुबां कटी नहीं ‘, कबीर जिंदा है ‘, इतिहास घायल है ‘ तथा ‘ एक प्रहार लगातार ‘ प्रकाशित हैं | हाल ही में प्रकाशित ‘ विचार और रस ‘, पुस्तक में उन्होंने रस-सम्बन्धी सिद्धांतों का विवेचन अपनी नयी उद्भावनाओं के साथ किया है | सद्यः प्रकाशित शोध कृति ‘ विरोधरस ‘ में परम्परागत रसों से अलग एक नये रस की खोज की है, जिसका स्थायी भाव ‘ आक्रोश ‘ बताया है । यह रस यथार्थवादी काव्य को रस की कसौटी पर परखने के सन्दर्भ में अति महत्वपूर्ण है। पुस्तक के शीर्षक को सार्थक करतीं संकलित बाल कविताएँ बच्चों में देश-प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना को उद्दीप्त करती हैं। जिसमें देशभक्ति की भावना हो, वह भारत-माँ के लिए अपने को मिटा तो सकता है, किन्तु गुलाम कहलवाना पसंद नहीं करेगा- फांसी के फंदों को चूमें, लिए तिरंगा कर में घूमें, भारत-माँ हित मिट जायेंगे किन्तु ग़ुलाम न कहलायेंगे। हमारा राष्ट्रीय ध्वज ‘ तिरंगा ’ भारत की पहचान ही नहीं, उसकी आज़ादी और उसी का परिचायक भी है- अब परतंत्र नहीं है भारत करता है ऐलान तिरंगा। तिलक, सुभाष, लाजपत, बापू के सपनों की शान तिरंगा।