आज हम स्वतंत्रता प्राप्ति का अमृत महोत्सव मना रहे हैं यानी कि हमे स्वतंत्र हुए आज 75 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। उसी उपलक्ष्य में हम 101 भारतीय वीरांगनाओं का बलिदान लिख रहे हैं। ‘‘इस आजादी को पाने के लिए हमारे कई वीरो ने अपने प्राणों की आहुति दी, तो महिलाएं भी पीछे नहीं रहीं। सच कहें तो यह आजादी महिलाओं के संघर्ष के बिना मिल ही नहीं सकती थी।’’ इस संग्राम में महिलाओं ने तलवार और बंदूके थामकर अंग्रेजों से युद्ध ही नहीं किया बल्कि साम, दाम, दंड, भेद, छल, बल, कल, सभी प्रकार से क्रांतिकारियों का साथ देकर अंग्रेजो से लोहा लिया है। यह महिलाएं ही थीं, जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर हथियारों की सप्लाई करती थीं। कभी कचरे की टोकरी मे, कभी पैरों में बांधकर, साड़ी के नीचे ढंककर, कभी बच्चे को पीठ पर लादकर, तो कभी रातों को मीलों पैदल चलकर, डाकुओं के खेमे से भी, हथियार लाकर क्रांतिकारियों को मुहैया कराती थीं। रूपया पैसे, गोला-बारूद, रसद एकत्रित कर, क्रांतिकारियों के कैंप तक उन्हें किस तरह चोरी-चोरी पहुंचाना है, यह महिलाएं बखूबी जानती थीं। ‘‘स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाली महिलाओं की संख्या, गांवों से लेकर शहरों तक करीब बीस लाख थी। करीब दस लाख महिलाएं तो विभिन्न क्षेत्रों से पूरे भारत में सक्रिय होकर, आंदोलनकारियों का सहयोग कर रही थीं। सच कहा जाए तो आंदोलन की धुरी यह महिलायें ही थीं।’’