Haaflet

Haaflet
यूँ हीं नौ बजे के आसपास रात को टहलते हुए बाहर निकला । झिंगुड़ो के आवाज़ , पत्तों सरसराहट, हल्की ढंठी हवा , नीले चादर से ढंका आसमान, हिलते कांपते लम्हों की टोह लेता मन , बढते गिरते समय के साथ अनचाहे सोच के साथ कदम धड़कन के मृदंग का शोर सीने में दबा कर अपने संकोच के अंधेरे कोने में थिर और चुपचाप से टहलने जाते हुए की इस गीत ने मेरे एकांत को भंग कर दिया । गीत गुरु जी के कमरे से आ रही थी । गुरु...More

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