पाञ्चजन्य को धारण करने वाले यदुकुल श्रेष्ठ परमपिता परमेश्वर श्री कृष्ण को सर्वप्रथम नमन करता हूँ, पूर्णब्रह्म सोलहों कलानिधान भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताए गए गीता ज्ञान जो कि उन्होंने अपने प्रिय मित्र एवं भक्त धनंजय को कुरुक्षेत्र रण स्थल में तब दिया था, जब वह अपने कर्म पथ से विमुख हो रहे थे, ठीक उसी प्रकार हमारे साझा-संग्रह के सहयोगी समस्त कविगण एवं प्राज्ञाएँ कृष्णकृपामृतमयी अपनी कविताओं के माध्यम से वर्तमान में या यूँ कहे कलिकाल में मानवता को गीतामृतमय अपने काव्य पीयूष का पान कराने में सक्षम हुए हैं ।
वर्तमान काल में देश के कई शहरों के कलम के साधकों ने अपने हृदय में उपजे विभिन्न भावों को काव्य की विविध विधाओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया, उनके इस उत्कृष्ट सृजन को पढ़कर मेरे मन में यह विचार आया कि क्यों न इसे संकलित कर आप सभी के समक्ष प्रस्तुत किया जाए, वर्तमान काल में हुए इस उत्तम/सार्थक सृजन को साझा संग्रह के माध्यम से आप सभी के हाथों में समर्पित करते हुए मैं अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ, “पांचजन्य नेहनिर्झर” साझा संग्रह विविधता में एकता का एक जीवंत स्वरूप है, जो विभिन्न क्षेत्रों और विभिन्न राज्यों के कवियों द्वारा विविध विधाओं में तरह-तरह के भावों को पिरोए गए “काव्य-प्रसूनों” का एक सुंदर सा गुलदस्ता है।