आज हम देखते हैं कि हिंदी साहित्य में बाल साहित्य का कुछ अभाव नज़र आता है।
अगर भारत में हिन्दी साहित्य की प्रतिदिन 50किताबें प्रकाशित होती हैं तो उनमें बाल साहित्य की
मुश्किल से 3किताबें होंगी।
यह बहुत सोचनीय विषय है एवं बहुत चिंता जनक स्थिति है।आज बच्चे अपनी पुस्तकें छोड़कर घर पर मोबाइल से जुड़े रहते हैं। और जानलेवा खेलों में अपना बहुमूल्य समय नष्ट करते रहते हैं।
इन्हें अपनी संस्कृति और परम्परा से पुनः जोड़ने में बाल साहित्य सहयोगी होगा। ऐसा मेरा सोचना
हैं।इसी ध्येय की पूर्ति हेतु मैंने बाल कविताएं हेतु कलम चलाई है। बाल कविता लिखना सरल नहीं है । बच्चों जैसा मन करके बच्चों जैसी सोच में उतरकर सहज सरल भाषा का उपयोग करते हुए कविता लिखना पड़ती
है।
मैंने यही कोशिश की है यह मेरा बाल कविताओं का काव्य संग्रह है।जिसका नाम,,,बाल कविताओं का उपवन,, है
इसके पहिले मेरा,,,मैं भी कभी बच्चा था,,नाम का बाल कविताओं का संग्रह प्रकाशित है।
आशा है यह बाल काव्य संग्रह ,,बाल कविताओं का उपवन,, बच्चों के साथ साथ
सभी कवियों, लेखकों, शिक्षकों, कहानीकारों,ओर समस्त कर्म चारियों को, किसानों को , नेताओं को, तथा आम आदमी को यह, बाल कविताओं का उपवन,, पसंद आएगा।