कविता कभी लिखना मेरे लिए कभी भी आसान नहीं रहा । यह ठीक वैसा ही है जैसे एक स्त्री का प्रसव पीड़ा सहना । जैसे ही कविता के लिए कोई विचार मन में जन्म लेता है... फिर मन हर समय उसी के इर्द-गिर्द अपना ताना बाना सुनता रहता है । कई दिन, हफ्तों या फिर महीने भर तक मन में कविता का स्वरुप , आकार बनता - बिगड़ता रहता है । एक भाव मन में आता है , तो दूसरा जाता है ।महीने भर की विचारो की कशमकश के बाद , मन में जन्म लेता विचार ... कविता के रुप में ढल पाता है । मैथिऊ अर्नोल्ड के शब्दों में कहे तो , " कविता विचारों को सरल , सुंदर एवं कारगर तरीके से व्यक्त करने का उपयोगी उपाय है ।" कविता की भाषा कभी भी क्लिष्ट व कठिन नहीं होनी चाहिए । न ही कविता में भारी भरकम शब्दों की भरमार होनी चाहिए कि जिनके अर्थ जानने के लिए कविता के रसिक पाठक को शब्दकोश देखने की बार - 2 जरुरत पड़े । कविता की भाषा ऐसी सरल और सहज होनी चाहिए कि एक आम पाठक भी कविता को पढ़कर समझ सके कि कवि आखिर कहना क्या चाहता है ?