"सपने में आना मां" मां का आशीर्वाद है, पिताजी का दिया हुआ स्वाभिमान है। उन दोनों के जाने के बाद इन कहानियों में मैंने उन अनुभवों को शब्दों में लिखा है जो अकेले महसूस किए और किसी से साझा नहीं हुए।
अपनी रचनाओं को पुस्तक के आकार में देखना एक लेखक का सपना होता है। कई सालों से मेरा भी यही सपना था जो अब शॉपिज़न के माध्यम से पूरा होने जा रहा है। लिखने का बचपन से ही शौंक था। जितना याद पड़ता है, दसवीं कक्षा में नाटक प्रतियोगिता के लिए एक नाटक लिखा था जो दहेज़ प्रथा पर आधारित था। नाटक प्रथम स्थान पर रहा और कई बार उसका मंचन भी हुआ। जिसमें अभिनय भी किया था।
पढ़ाई पूरी होने तक लेखन जारी रहा। विवाह के उपरांत कुछ सालों तक नियमित लेखन जारी नहीं रख पाई। थोड़ा बहुत फिर भी लिखती रहती थी। कोरोना काल में घर में समय बिताने का अधिक अवसर मिला तो सभी पुरानी डायरियों के पन्ने पलटकर देखे। मन में एक टीस उठी कि मैं लेखन से दूर क्यों हो गई। समय मिल रहा था तो लिखना पढ़ना फिर से शुरू हो गया। हां, इस बार समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशन हेतु भी रचनाएं प्रेषित करना प्रारंभ किया। उस समय होने वाली ऑनलाइन साहित्य संगोष्ठियों में भी हिस्सा लेती रही। प्रकाशन से मिले प्रोत्साहन के कारण आज़ एक पुस्तक में अपनी रचनाएं संजोने जा रही हूं।