आसमान में तारे गिनती सुकन्या ईश्वर से कह रही थी कि मेरे किस जन्म की सजा आपने मुझे दी कि मुझे शादी के 10 वर्ष बाद भी कोई औलाद नही दी,और बस 2 बूंद आंसू छलके जमीन पर गई पड़े ,
यही क्रम विवाह के एक वर्ष बाद से हर रात चल रहा था,डॉक्टरों का हर प्रयास निष्फल और दुआओं का निष्प्रभावी होना यही जीवन का अंग बन गया था,
सुवह सुकन्या जल्दी उठी विवाह की वर्षगांठ थी तो सोंचा इस वर्ष अनाथालय में बच्चो के साथ कुछ पल गुजारेंगे,
अनाथालय के गेट पर ही प्रबंधिका ने स्वागत किया और फिर बच्चो से मुलाकात के लिये अंदर गई ,छोटे छोटे बच्चे बच्चियो को देख मन मे उल्लास भर गया सभी बच्चों को कपड़े,खाने का सामान आदि देते देते एक छोटी सी लड़की रिद्धिमा उसके पास आई और उंगली पकड़ ली ,सुकन्या का मातृत्व प्रेम जाग उठा उसने तुरंत उसे गोद मे उठा लिया चूमने लगी और भाव विह्वल हो गई,
चलते समय बार बार वह उसे निहार रही थी जैसे कुछ छूट गया था,
ऑफिस में पहुंचकर पता किया तो पता चला केदारनाथ जी की आपदा में पूरा परिवार समाप्त हो गया था और यह बच्ची ही बची थी जिसे रिश्तेदारों ने अनाथालय में लाकर दे दिया कभी मुड़कर देखने भी नही आये आखिर बड़ी होगी तो शादी करनी होगी पढ़ाई पर खर्च होगा मुआवजा भी खुद लोगो ने ही ले लिया इसके नाम पर सुनकर आंख भर आईं सुकन्या की और आंखों में चमक भी शायद कुछ निर्णय ले लिया था,