कभी मन से हुई, कभी आत्मा से, तो कभी मृत्युलोक के रोशनदानों से मुझे समय समय पर पुकार सुनती रही और उसे मैने हमेशा ही पन्नों पर उतारा और आज परिणाम दुनिया के समाने है। मेरी दुनिया की झलकी में अगर कोई सिर्फ अपने मन की देखेगा तो उसे मुकम्मल तौर पर निराशा ही हाथ लगेगी। यहां अगर खटास मिलेगी तो मिठास भी मिलेगी, कड़वाहट भी इस अभियान में पीछे नहीं रहा है। क्योंकि ये मेरी दुनिया है, ये मेरा दुख है, मेरी खुशी है, मेरी हंसी है और लाख रुपए की बात ये कि ये मेरा किस्सा है, जिसे आप ने चाव से सुनना है, लगन के साथ पढ़ना है। आपको निराशा न होने का जिम्मा मेरे सर आंखो पर है। क्रोनोलोजिकल रिकॉर्ड के लिए उद्घृत है कि पुस्तककार के रूप में ये मेरी तीसरी पुस्तक है।