बचपन में नानी से रोज शाम को, दीया-बत्ती के समय या रात को सोने से पहले, खूब कहानियां सुना करते थे। इन कहानियों में क्या नहीं होता था-- राजकुमार,राजकुमारी, राजा-रानी, देवी-देवता सुंदर अप्सराएं, परियां, डराने वाले जादूगर,भूत, राक्षस, सारा संसार होता था।
चातुर्मास में मां शाम के समय,देव्हारे (देवघर)के सामने समई के मंद उजाले में सबके हाथों में ३-३ अक्षत चावल के दाने थमा कर सप्ताह के 7 दिनों की व्रत कथाएं सुनाती थीं।
विद्यार्थी जीवन में चंदा मामा, पराग इत्यादि बाल पत्रिकाएं, पंचतंत्र, हिंदी, अंग्रेजी,मराठी-साहित्य के लेखकों की सर्वोत्तम कथाएं पढ़ीं। बाद में लघु कथा की विधा से परिचय हुआ। अपने शहर के विख्यात लघुकथाकारों की लघुकथाएं भी पढ़ी-सुनी हैं।
मेरी लघुकथाओं के पात्र मुझे आसपास के परिवेश से मिलते हैं और अपने अनुभव एक लघुकथा के कथानक के रूप में मुझे सौंप जाते हैं। जीवन के इन विभिन्न अनुभवों के पुष्प मैंने इस संग्रह में गूंथकर प्रस्तुत करने का प्रयास किया है । आशा है सुधी पाठक इसे अपना स्नेह,आशीर्वाद प्रदान कर मुझे प्रोत्साहित करेंगे।