हमारी ज़िन्दगी की किताब में न जाने कितने ही किस्से छुपे होते हैं, कितनी ही कहानियाँ छुपी होती हैं। इनमें से कुछ कहानियाँ वास्तविकता की चूनर ओढ़कर हमारे अपने जीवन के कुछ अनछुए पहलूओं से हमारा सामना करवाती हैं। हम कागज़ पर अक्सर कल्पना के रंग बिखेरते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि अधिकतर समय यथार्थ कुछ और होता है। कुछ सकुचाई हुई सच्चाइयां अपने ही दामन में सिर छुपाए हुए सिसकती रहती हैं और जो कुछ सिर उठाकर चलना सीख गईं तो तथाकथित सभ्य समाज द्वारा अपने दामन पर कलंक का टीका लगवाकर घूमती हुई नज़र आती हैं । जब कभी हम जैसे चंद कलमकारों के कलम की स्याही से उकेरी गईं कहानियां पन्नों पर उतरने लगती हैं तब कोयले की खान की मानिंद भयावह काली सच्चाई सामने आती है। कुत्सित चेष्टाएं और कीचड़ सनी सोच दुनिया के समक्ष उजागर होती हैं।