स्त्री के हाथों में सजी माणिक - अंगूठी व सुर्ख चूड़ियां पर अंकित वो नाम तलाश करना चाहती थी ..! मर्माहत हृदय में संवेदना उमड़ रही थीं ..! लेकिन स्वर बहुत ही संतुलित था ..! आवाज में थोड़ी नरमी लाते हुए बोली ...",जी ...आप जो भी हों मुझे आपके कहने का आशय स्पष्ट नहीं ..! आपने अपने घर को स्त्री दायित्वों से सींचा है ..! जहां तक है कि, स्त्री जहां वास करती है वह स्थान स्वयं ही पवित्र है , वह वहां रचना करती है यह स्त्रीतत्व गुण है ..! यह एक सत्य है.. ना तो यहां मैं आई ना तो मेरा यहां जन्म ही हुआ यह निराधार है ..! आपको ज्ञात करा दूं कि , मुझे इस अभिशप्त "रानी" विला में लाने वाला एक पुरुष का ही हाथ रहा है ..!! मुझ जैसी स्त्री एक पुरुष की आवश्यकता बनी व आप जैसी स्त्रियों को यहां आना पड़ा हमारे सामने गिड़गिड़ाने ..!"