दो वर्षों के समय में --- कोरोना काल में सभी नागरिक , कलाकार, साहित्यकारअंतरजाल ( इन्टरनेट ) की शक्ति और पहुँच से परिचित हो चुकें हैं या कहें आदि हो चुकें हैं | कारण सबको मालूम है ऐसी परिस्थितियाँ रहीं | लाकड़ाऊन में गतिविधियां बंद थी- घर में रहना , मोबाइल देखना , पुस्तकों का वाचन , गायन, चित्रकला ,आध्यात्मिक चर्चा में शामिल होना ( आनलाइन) | यही साधन थे , कोरोना महामारी के दहशतभरे वातावरण में स्वस्थ रहने के | महामारी का टीका तो बहुत बाद में आया, खैर | उसी समय मेरा परिचय एक आनलाइन एप " शापिज़ेन एप " से हुआ | इस पर अपनी रचनाएँ दे सकते हैं , जिन पर वाचकों की प्रतिक्रियाएँ भी आती हैं , जिन्हें जानकर आप उत्साहित होते हैं |
मेरे दो कविता संग्रह पहले आ चुके हैं | पहला " भावों से शब्दों तक "(2015),पहले पहल प्रकाशन,भोपाल तथा " खुली आँखों के सपनें" (2018), अंतरा शब्दशक्ति प्रकाशन, बारासिवनी ,बालाघाट | इस बार मैंने विचार किया नई तकनीक का सहारा लेते हुए कविता-संग्रह आपके सामने लाऊं | इसमें सितंबर 2018 से नवंबर 2021 कालखंड की रचनाएँ हैं |
पिछले कुछ वर्षों से मराठी कविताओं की ओर रुझान हुआ है | कुछ कविताएं पत्र- पत्रिकाओं में स्थान पा चुकीं हैं | कुछ पत्रिकाओं के दिवाली-अंकों में भी आईं हैं, महाराष्ट्र में मराठी दिवाली अंक निकालने की परंपरा अभी भी प्रचुर मात्रा में है , करीब 250-300 दिवाली अंक निकलते हैं |
यह संग्रह " उड़नें को आकाश..." लाते हुए मुझे बहुत संकोच हो रहा है—कैसे रहेगी आपकी प्रतिक्रिया लेकिन जीवन में परीक्षा देना मुझे पसंद है बिना हिचके , बिना डरे | इस बार भी दे रहा हूँ | यह संग्रह निकालने में मुझे कु॰ ऋचा दीपक कर्पे जी का अतुलनीय सहयोग मिला , वह बहुत अच्छी साहित्यकार हैं और सहायता करने को तत्पर रहतीं है , उनका बहुत आभारी हूँ | शोपीज़ेन.इन, श्री उमंग चावडा साथ ही हिन्दी विभाग प्रमुख प्रगति दाभोलकर जी का में हृदय से आभारी हूँ, आप सब के बिना यह संभव नहीं हो पाता।
आशा करता हूँ संग्रह की कविताएं पसंद आएंगी |