गुजराती में ग़ज़ल केहना शुरु हुआ 1976 से. 1984 में पहला ग़ज़ल संग्रह ‘वमळ’ प्रकाशित हुआ. 1984 से 1996 तक यह सिलसिला बना रहा. 1997 से 2017 तक, यानी पूरे बीस वर्ष ग़ज़ल केहने से दूर रहा. 1997 में वयनिवृत्त होते सबसे पहला काम छपी अनछपी अछांदस कविताओं का संग्रह ‘भावसूत्र’ तथा एक प्रायोगिक लघुनवल ‘सोम्तातनो ऊंट’ 2021 में प्रकाशित करने का काम हुआ. युवावस्था से ही हिन्दी, उर्दू भाषा से गहरा लगाव रहा. परिणाम स्वरूप हिन्दी, उर्दू में कही कुछ ग़ज़लों का ‘एक चींथड़ा ख़्वाब’2021 में प्रकाशित हुआ और दूसरा ग़ज़ल संग्रह ‘खुश्बूओ के सायें’ नाम से प्रकाशित कर रहा हूँ. आपके सुझाव और आपके अभिप्राय की अपेक्षा है. परेश दवे "साहिब"