साहित्य और दर्शन के प्रति मेरा विशेष झुकाव छात्र-जीवन से ही रहा है किन्तु मैं आँख मूँदकर किसी भी बात को स्वीकार नहीं करता।मैं हर बात को वैज्ञानिक नजरिया से तर्क के कसौटी पर लाकर उसे जाँचता व परखता हूँ।फिर निष्कर्ष के रूप में उसे स्वीकार करते हुए अपने चिन्तन का आधार बनाता हूँ।मेरे द्वारा रचित यह पुस्तक "दुनिया बदल दो" जो कि एक काव्य संग्रह है मेरे प्रगतिशील वैज्ञानिक चिन्तन की प्रमाण सिद्ध होगी।
मैं बहुतेरे कवियों की कविताओं की सराहना करता हूँ साथ ही साथ बहुतेरे कवियों की कविताओं को नकारता भी हूँ।मेरा स्पष्ट मानना है कि किसी भी कवि या लेखक का मूल उद्देश्य समाज और व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना होना चाहिए जिनके कविता,लेख या अन्य विधाओं से साहित्य की इस मूल उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती उसके रचना की उद्देश्य मानसिक ऐयासी,धन कमाना या किसी तरह से अपने नाम को विद्वानों की सूची में अंकित करा लेना ही मात्र होता है।मैं नहीं मानता कि मैं एक बहुत बड़ा कवि या साहित्यकार हूँ क्योंकि इस क्षेत्र से ऐसे लोगों के नाम जुड़े हैं जो साहित्य के क्षेत्र में सूर्य के समान चमकते हुए तारा जैसे हैं।मैं केवल इतना दावा कर सकता हूँ कि मैं इस पुस्तक में साहित्य के उद्देश्यों की पूर्ति करते हुये यथार्थ के कसौटी पर खड़ा हूँ।
देश और दुनिया में वर्तमान पूँजीवादी व्यवस्था के कारन जो भेद-भाव ,विषमता और शोषण व्याप्त है उसका अन्योन्य क्रिया हमारे मस्तिष्क के साथ होता है।मैं इस आधार पर जो महसूस कर रहा हूँ उसे अपनी रचना की आधार बनाया हूँ।मैं अपनी रचनाओं के माध्यम से इन समस्याओं का समाधान बताने की भी पूरी कोशिश किया हूँ।मेरी कलम में जितनी ताकत अबतक उत्पन्न हुई है मैं पूरी क्षमता के अनुसार उसे इस पुस्तक की काव्य-संग्रह के माध्यम से साहित्य सेवा के लिये समर्पित कर रहा हूँ।मैं अपने उद्देश्यों में कहाँ तक सफल हुआ हूँ ये इस पुस्तक के पाठक को तय करने के लिये मैं ईमानदारी पूर्वक जिम्मेदारी सौपता हूँ।