यह 'अर्घ्य' है इक्यावन कविताओं का, जिसे मैं अर्पण करती हूँ हिंदी भाषा के प्रगल्भ साहित्य- सूर्य को, समस्त गुरुजनों को, जिन्होंने भाषा के वर्ण, व्याकरण और वैशिष्ट्य से अवगत कराया, मेरे माता- पिता को, जिन्होंने भाषाओं की समझ, सामर्थ्य, सौंदर्य और महत्व से अवगत कराया और अच्छे से अच्छा साहित्य पढ़ने हेतु प्रेरित किया और उपलब्ध कराया।
यही कारण रहा कि विभिन्न भाषा - साहित्य से सांठ- गांठ सदैव बनी रही और सारे मनोभाव, विचार और अनुभव, लेखनी के माध्यम से कागज पर उतरने लगे। समय के साथ पठन- पाठन और लेखन परिष्कृत होता रहा।
श्रीमान प्रदीप जोशी के सुझाव पर पत्रकारिता और जनसंचार विषय में एकवर्षीय पाठ्यक्रम पूरा किया, और तभी से रचनाओं के प्रकाशन का स्वाद चखा, जो आज भी मीठा लगता है।
अब, जब जीवन के पचास दशक पूरे हो रहे हैं, अपनी चुनिंदा इक्यावन रचनाओं का यह पुष्पहार उन सभी को भेंट करती हूँ, जिनके व्यक्तित्व, विचार, व्यवहार और अनुभवों से मेरे लेखन को समृद्धि प्राप्त हुई( इस सूचि में मेरी स्वर्गीय स्नेहिल दादी सर्वोपरि है)।