लेखन एक कला है। हमारे मन में जो भी अनुभूतियां या विचार हैं, उन्हें शब्दों में पिरोना या फिर जो अनुभव जीवन में आ रहे हैं, उन्हें लेखनी के माध्यम से अमर कर देना।" मेरी स्थिति भी इससे अलग नही रही। चिकित्सा मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर होने के बाद, अच्छे से प्रैक्टिस करना है, बस यही मन में था। सौभाग्य से, सोचा हुआ साकार भी हो पाया। पूरे 10 वर्षों की प्रैक्टिस के दौरान, अनेक प्रसंगों से दो-चार हुई, जिनकी पक्की छाप मन पर रही। यह सही है, कि हम जो भी पढ़ते हैं और वास्तविक प्रैक्टिस में जो अनुभव सामने आते हैं, इनमें बहुत फर्क है। चाईल्ड सायकोलॉजी, यह विषय मेरे मन के करीब रहा और पसंदीदा विषयों में से था। और संयोग ही है, कि इसी क्षेत्र में मेरे अनुभवों की गठरी बढ़ती जा रही है। बच्चों के भाव जगत के बारे में अध्ययन के दौरान, पालकों की व्यक्तिगत समस्याएं, पति पत्नी के संबंधों की जटिलता, पिंडे-पिंडे मति भिन्ना: की प्रवृत्ति देखी, उसी प्रकार एक पालक के रुप में भी विविध प्रकार होते हैं और इन सभी के अवरोधों का परिणाम जितना बच्चों पर होता है, उतना ही पालकों पर भी होता है, जब इस तथ्य को करीब से जाना, तब इससे संबंधित लघु लेखों की श्रृंखला शुरु की। मेरे माता-पिता, भाई-भाभी, नज़दीकी मित्र संबंधी आदि की पालकत्व संबंधी कुशलता का अवलोकन मैने बारीकी से किया। मेरे आत्मीय मित्र अमोल रसाळ के साथ पालकत्व और अंतर्वैयक्तिक संबंध अर्थात interpersonal relationships विषय पर अनेक चर्चाएं हुई और उन्हीं के परिणामस्वरुप इस पुस्तक ने आकार ग्रहण किया।