संभावना के नक्शे पर लक्ष्य का भवन
बिना रूपरेखा के कुछ संभव नहीं है। पहले नक्शा बनता है तभी भवन का निर्माण होता है। यह प्रत्यक्ष रूप से कागज पर बने या अप्रत्यक्ष रूप से मस्तिष्क रुपी पटल पर बने तभी इसका शासक रूप सामने आता है।
कहते हैं कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है। ठीक उसी तरह रचनाकार की आवश्यकता, उसकी चाहत, उसकी इच्छा, उसका लक्ष्य और की आवश्यकता उसे वह सब कुछ उसी अनुरूप करने को मजबूर कर देती है जो उसकी चाहत या आवश्यकता होती है।
इन्हें आवश्यकताओं और संभावनाओं को जानने का कार्य इस मंच पर हमारे विद्वान साथियों ने किया था। बिना लक्ष्य बनाया मनचाही मंजिल प्राप्त नहीं हो सकती। लक्ष्य तभी बन सकता है जब हमें अपनी अपेक्षा यह संभावना का पता हो। यह अपेक्षा हम अपने से रखें तभी मंजिल प्राप्त होती है।
यही वजह है कि हमें अपनों से क्या अपेक्षाएं हैं? यही अपेक्षाएं हम 2022 से क्या रखते हैं? वह हमें अपनी अपेक्षाओं पर खरा उतरने देगा या नहीं? यह सब हमारे मन की आकांक्षाओं पर निर्भर करता है। इसी को ध्यान में रखकर रचनाकारों से उनकी 2022 से अपेक्षाएं एवं संभावनाएं आमंत्रित की गई थी। जिसका सीधासा मतलब यह था कि रचनाकारों के मन को उद्वेलित किया जाए। वह क्या चाहता है। उसकी अपेक्षाएं क्या-क्या है।