संग्रह की पहली कहानी "पितृ परिचय" दिल को झिंझोड़ती हुई कई प्रश्न करती है। क्या रिश्ते अपनी पहचान खो चुके हैं? रिश्तों की आड़ में पिता चाहे सौतेला हो, मर्यादा खो बैठता है। एक मार्मिक कहानी का सकारात्मक अंत समाज में फैली बुराई को सरल तरीके से उजागर करने के पश्चात उसका समाधान भी बताता है। जो हुआ बुरा हुआ परन्तु हमें हर समस्या को सामना करते हुए सिर उठा कर गर्व से जीना है। एक मार्मिक कहानी अन्त में प्रेरणा देती है। ज्वलंत और नाजुक विषय को सरलता से कहना ही इस कहानी की खूबी है।
दूसरी कहानी "मन्नत" है। आखिर वह कौन थी! जिसके लिए आभा माँ के द्वार मन्नत माँगने गई लेकिन माँग नहीं सकी। परन्तु माँ तो सबके दिल का हाल जानती हैं, द्वार आए भक्त को कैसे खाली हाथ भेज सकती है। हाँ कभी-कभी देर हो सकती है। इस बार माँ प्रसन्न है, किसी और के लिए माँगी दुआ फौरन कबूल होती है और उसकी चाहत भी वर्षों बाद मिलती है। एक अनजान रेखा को आश्रय देना और उसके हक की लड़ाई में आभा का अतीत से वर्तमान का वर्णन लेखक मौमिता की दक्षता का प्रमाण है।
तीसरी कहानी "सहजन का पेड़" ग्रामीण परिवेश से निकलती हुई शहर और विदेश में एक ऐसे मोड़ पर समाप्त होती है, जहाँ पाठक एक बार अवश्य कहेंगे, काश ऋषिता शोभन का दामन थाम ले! यहाँ मैं मौमिता बागची की प्रशंसा करूँगा, कहानी के शीर्षक के अनुसार गुण होते हुए भी ऋषिता शोभन से दूरी बनाए रखना चाहती है। एक लंबी कहानी में इसकी पृष्ठभूमि का विस्तृत वर्णन भी है। कारण बताते हुए कहानी को सुंदर मोड़ पर अंत दिया है। यही कहानी की खूबी है। सरलतापूर्वक और तोषप्रद तरीके के लिखी कहानी में रस है जो पढ़ते समय आनंद प्रदान करता है।
"एवार्ड" कहानी आजके युवा लेखकों पर कटाक्ष है जो पेड एवार्ड पाने के लिए खुलकर धन खर्च करते हैं। तुरंत शौहरत पाना ही एकमात्र लक्ष्य है। मैं यहाँ श्रीकृष्ण के उपदेश का जिक्र करूँगा, लेखन हर लेखक का कर्म है। प्रसिद्धि और पुरस्कार ईश्वर के हाथ में है। निरंतर लेखन एक न एक दिन आपको मीठा फल अवश्य प्रदान करता है जो पेड एवार्ड से कहीं अधिक खुशी की वर्षा करता है। मैं पिछले लगभग पाँच वर्षों से मौमिता बागची के लेखक को पढ़ रहा हूँ। उनके प्रयास की सराहना करता हूँ। रिश्तों और मानवीय मूल्यों पर उनकी पकड़ उनके अनुभव को दर्शाती है।