योषिता -सृजिता के अन्तर्मन से निकले विभिन्न भावों का संयोजित स्वरूप है |योषिता का अर्थ होता है - स्त्री |प्रकृति का सबसे सुन्दर रूप, ईश्वर की सबसे सुन्दर कृति |हर स्त्री प्रेम , करूणा, ममत्व , अपनत्व, सहनशीलता , सौम्यता जैसे गुणों से तरबतर होती है , हर दुख को पीना जानती है, हर हाल में जीना जानती है |उसकी मुस्कराहट से खिलखिलाता है हर घर का आंगन |हंसती -मुस्कराती स्त्री गौरा का स्वरूप होती है लेकिन जिस तरह हर गौरा के भीतर निहित होती है काली उसी तरह हर स्त्री में निहित होती है एक शक्ति, जो छुपी होती है | हम एक स्वतंत्र देश के वासी हैं, हमारा संविधान हर स्त्री -पुरूष को समान अधिकार देता है |सदियों से दंश झेल रही स्त्री के स्वरूप में काफी बदलाव भी आया है |लेकिन अभी भी कितनी जगह ऐसी हैं जहां स्त्री के लिए बदलाव की जरूरत है |वह अपने ही घर में अपनों से हर रोज शोषित हो रही है |पितृसत्ता के पहाड़ के नीचे हर रोज दब रही है |हमारे इस विकसित समाज में कुछ पुरूषों की सोच अभी भी बहुत ज्यादा पिछड़ी है, वे अभी भी स्त्री को पैरों की जूती ही समझते है |वे चाहते हैं स्त्री आज भी घर के आंगन से ही देखे सूरज, वे बना देते हैं घर को ही पिंजरा जहां से फड़फडाते हैं उसके पंख, घुटती हैं उसकी सांसे, दहकती हैं उसकी आंखें |अगर वह मांगती है अपना अधिकार तो पीट दी जाती है है, कुचल दी जाती है उसकी आत्मा, दिये जाते हैं जख्म और उन्हीं जख्मों को मेकअप से छुपा मुस्कराती है वो |उसकी अपनी जिंदगी ही न जाने कब बोझ बन जाती है |विरोध ना कर पाने की बेबसी, अपनों से ही ठगे जाने की पीडा़ और अपने सपनों की अर्थी लेकर चलने रहने का भार एक दिन उसे मार देता है या कहूं वो मार दी जाती है |