उजड़ी हुई औरतें यह कहानी है विभाजन का दर्द झेलती अंजना की और अंजना जैसी न जाने कितनी लडकियों की....जिन्होंने यौवन की दहलीज पर कदम रखा ही था कि संकट के बादल मँडराने लगे। कहानी का प्रारंभ वर्तमान से होता है, वर्तमान में अंजना वृद्धावस्था में है, जो गाँव के एक बडे से घर में अकेले रहती है, गाँव के लोग उसे चौधराइन कहते हैं। अपने बीते दिनों की टीस मन में समेटे अंजना खामोशी की चादर ओढे रहती है। उसकी आँखों का अधूरापन सारा दर्द बयां करता है। कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है अंजना अपने बीते दिनों में पहुँच जाती है। विभाजन के बाद अंजना अपने परिवार से बिछड॒ गई और शिकार हुई भेडियों की गंदी नजरों की, जिन्होंने उसके शरीर को ही नहीं वरन रूह को भी तार-तार कर दिया। किसी तरह बचते बचाते उसकी मदद को एक फरिश्ता सामने आया, जिसने न केवल उसकी सहायता की बल्कि उसे वहाँ से निकलने में भी मदद की। वहाँ से निकलकर अंजना को आश्रय तो मिला पर उसकी टीस कम न हुईं। खामोशी की चादर ओढे अंजना चौधराइन बनी पर उसके मन में अपने परिवार से मिलने की आस जीवित रही। चौधराइन बनी अंजना के जीवन में खुशी की कुछ घडियाँ लेकर आया एक नन्हा-सा बालक, जिस पर दुलार लुटाती वो उसकी यशोदा बन गईं। पर मन की खामोशी अंदर ही अंदर उसे खोखला कर रही थी।