दिन भर की दौड़ धूप के बाद जब गोपाल जी अपने बड़े से केबिन में अपनी कुर्सी पर बैठे तो उनके चेहरे पर गहन संतोष के भाव थे। उनके ठीक सामने गोपाल जी के इष्ट देव ठाकुर जी की बड़ी सी तस्वीर लटकी थी।
गोपाल जी बचपन से ही ठाकुर जी के परम भक्त थे। उनके परिवार का हर काम ठाकुर जी की आराधना से ही आरंभ होता था। गोपाल जी खड़े हुए और दोनो हाथ जोड़ कर नतमस्तक हो मन ही मन दोहराया,"प्रभु आपकी कृपा दृष्टि हम पर निरंतर रही है, इसीलिए सब संभव हो पाया। मैं तो कुछ भी नहीं, भविष्य में भी अपना आशीर्वाद परिवार पर बनाए रखना।"
गोपाल जी कुछ भी नही भूले थे। उन्हें अपने अतीत का एक-एक क्षण याद था कि किस तरह वे अपने जीवन की डोर बड़ी कठिनाई से थामे हुए यहाँ आए थे। एक झोंपड़ी नुमा छोटा सा कमरा उनकी जमा पूंजी था।