गाँधी ,लेनिन बीच खड़े चैराहे पर
अपना रास्ता ढूँढ रहे हैं
क्यों आत्मा की आवाज
मूँह से निकलती नही
एक अँधेरा कब से पूछ रहा है
सत्य खड़ा है सर को झुकाये
असत्य कैसे मचल रहा है
आस्था जा दुबकी है कोने में
अनास्था उस पर उछल रही है
करुणा जा बसी किताबों में
हिंसा सड़क पर चल रही है
प्रेम नाम का बच्चा पैदा होता है
हृदय में वासना रह जाती है
विश्वास चेहरों पर हीं रह जाते हैं
घृणा आँखों में झलक रही है
रावण अयोध्या जा बसा है
राम वन ने भटक रहे हैं
पतित समाज त्रिशंकु बन कर
बीच में जैसे लटक रहा है
मानव एक प्रश्न बनकर रह गया है
'सुमन' क्यों कारण खुद से पूछ रहा है