इस कहानी संग्रह में,
सात ऐसी कहानियों का संग्रह है, जिसमें से अधिकांश को लेखिका ने अपने बचपन में सच्ची कहानियों के अनुभव के रूप में अपने आस पास से पाया।
दरअसल ये कहानियाँ गांवों की लोक भाषा और जनजीवन में मिली हुईं कहानियाँ हैं।जो आपको कल्पनालोक में ले जाकर भय की दुनिया में खड़ा कर देतीं हैं।
एक मुर्दा और तीन कब्रिस्तान शमशान में घटी सत्य घटना है, उसमें थोड़ी सी काल्पनिकता का पुट अवश्य है।
प्रेतात्मा को न्याय सत्य कहानी है। उसमें मिले सबूत खुद मृतका ने आकर बताए थे।
घटवारिन, मेरी प्रिय कहानियों में से एक है जो मेरी दादी अपनी मुंह बोली सखी के जीवन में घटी घटना सुनया करती थी । ऐसी ही एक प्रिय कहानी है अमावस्या की रात, जो एक अर्ध रात्रि में ही गलती से तालाब पर जाकर, मेरी बुआ जी ने खुद ही अनुभव किया क्योंकि उनके पास घड़ी नहीं रही। ऐसे ही एक रात की कहानी है सफर के साथी -प्रेत प्रेतिनें।
मामुलिया –एक खेल एक रिवाज, बुंदेलखंड की एक लोक संस्कृति है जो कुंवारी कन्याएँ खेल भावना से, जब तक ब्याह नहीं हो जाता खेलती हैं फिर ब्याह के बाद पहली साल उसे आखिरी बार खेल कर पुजौनी कर दी जाती है ताकि भूत उस लड़की के सिर पर न चढ़े।
इस खेल में सचमुच भूत आता ही ऐसा माना जाता है मामुलिया के फूल चढ़ाये जाते हैं। जो सिर्फ नौरता खेलने के मौसम में ही फूलते हैं। खौफ का मंजर भी मेरे जीवन में कहीं न कहीं घटे हुए चुनिंदा अंशों के साथ कल्पना के समावेश, की कहानी है।
मेरी कहानियों में आपको भूत लोक, जीवन में घुला मिला और हममें से एक होता है जिसे बाद में महसूस करके की अरे वह तो भूत था!! पाठक सन्न रह जाता है। इनमें खौफ तो है पर वीभत्सता नहीं। कहानी में किसी अंधेरे से कोने में खड़ा हुआ डरावना भूत हो सकता है जो पाठक को दहशत में डाल देता है। जनजीवन, लोक संस्कृति, कहीं देशी भाषा के भी दर्शन अवश्य होंगे।