जहां तक मेरा मानना है की हर एक के अंदर एक कवि, एक लेखक, एक कहानीकार छिपा होता है यह अलग बात है कि हम उसे कितना अपनी कला में लाते हैं। बचपन से लगाव था कहानी सुनने में और कविताओं की चंद लाइनें लिखने में ।लेकिन इस रूचि को कभी मैंने अपनी जिंदगी का हिस्सा नहीं बनाया शायद ना कभी किसी से सहयोग मिला और ना ही मंच ।शायद मैं 5 या 6साल की थी जब मेरे पापा की मौत हो गई और इसके बाद घरेलू परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया लेकिन अब शादी के 30 वर्ष बाद दोनों बेटियों की शादी के बाद मेरे पास काफी समय फ्री रहता था तो मैंने ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में ज्वाइन किया 7 दिन के सहज राजयोग कोर्स के बाद तो जैसे बाबा( परमात्मा )ने मेरी इस कला को यथार्थ स्थान दिया और यह कला खुद-ब-खुद ऐसा स्थान लेती गई इसके बाद अध्यात्म और आत्ममंथन मेरी कविताओं का विशेष विषय बन गया इस मार्ग पर चलने के बाद झूठ , आडम्बर,भ्रष्टाचारी के प्रति जैसे मन विद्रोह करने लगा मेरी इन कविताओं में परमार्थ और अध्यात्म का समन्वय मिलेगा ।यह बात दिल से कहती हूं कि यह सब कविताएं लिखी तो मैंने है लेकिन लिखवाने वाला कोई और था वह था मेरा बाबा (परमात्मा) ।कुछ शब्दों के भाव और भावार्थ तो मुझे भी पता ना थे परन्तु वह जो लिखवाता था वह मैं लिखती जाती थी ।आशा है आप सबको कविताओं के अंदर से भाव की गहराई समझ आएगी और पसंद भी । आप सभी पाठक अपना स्नेह और आशीर्वाद प्रदान कर मुझे प्रोत्साहित करेंगे।