मेरा दूसरा काव्य संग्रह ”उदास नहीं हुआ था घर “ आप सबके सम्मुख हैं संग्रह में कुल 77 छोटी बड़ी कविताएँ संकलित हैं। जिनमें कुछ छंदबद्ध हैं कुछ छंदमुक्त हैं। रचनाएँ लिखनी है इस विचार से नहीं अपितु अनुभवों के निकटता से तादात्म्य स्थापित करते हुए स्वतः स्फूर्त हैं। इनका वण्र्य विषय वही है जो एक सामान्य आदमी के इर्द- गिर्द घटित होता है । उस घटित को मेरे द्वारा सहज भाषा में उकेरने का प्रयास है। संग्रह में कुछ रचनाएँ माता पिता के लिए भी हैं। कुछ रचनाएँ प्रकृति के उपर भी हैं। संग्रह की शीर्षक रचना उदास नहीं हुआ था घर स्वयं के बंद पड़े घर को खोलते समय का देखा हुआ चित्रण है। कोसी कैसे धारे धीर शीर्षक रचना कटते हुए वन प्रदेशों के उपरांत सूख रही नदियों का यथार्थ है। ’गाँव की गरीबी‘ गाँव से प्रतिदिन शहर अपना उत्पाद बेचकर गुजर बसर करने वाले ग्रामीणों का दर्द है। ‘कौसानी का सूर्यास्त’ तथा वेदों का महाभाष्य है बनारस सौन्दर्य बोधक रचनाएँ हैं । लड़के का जन्म तथा वे रो पड़ीं यत्र तत्र बिखरे हुए अवयवों को एकत्रित कर कल्पना के सहारे एक मूर्तरूप दिया गया है। कुआँ रोज खोदकर ही तथा कैसे कह दूँ रचनाएँ कोरोना काल की त्रासदियों से उत्पन्न रचनाएँ हैं।