आपस भी के उत्साहवर्धन से आज मैं अपनी लेखनी को जीवंत बनाते हुए समाज का यथार्थ चित्रण लघुकथा के माध्यम से प्रस्तुत कर रही हूं।
लघुकथा
कथा परिवार की छोटी सदस्य भले हो परंतु प्रभाव में किसी बड़ी कथा या उपन्यास से कम नहीं होती।लघुकथा आसपास के परिदृश्य का प्रतिनिधित्वकरती है।जहां व्यथा है वहां कथा है।शब्द-शब्द से जुड़कर रचना और अपव्यय से बचना ही लघुकथा सृजन का मूलमंत्र है।इन सभी बातों का ध्यान बखूबी "दर्पण समाज का" में रखा गया है।
साहित्य दर्पण है समाज का
इसका जीता जागता उदाहरण मेरी लघुकथा संकलन है।सच्चीभक्ति, आजादी, मूलशिक्षा, सिसकती बेटियां, दहेज का तराजू, बुजुर्गों की व्यथा आदि लघुकथाओं के द्वारा समाज के ज्वलंत पहलुओं को उजागर करना हमारा ध्येय रहा ताकि वे समाजोपयोगी बन सके।
भाषाशैली और शिल्पकार चाववकसा वही लघुकथाओं का सम्मोहन है जिसकी भरपाई करने का पूरा प्रयास किया गया है।अपने चारो ओर के परिदृश्य में विचरण कर जिसे मैंने दिल से महसूस किया उन अनुभूतियों का समावेश है *दर्पणसमाजका*।
लघुकथा तिरंगाटांगेरिक्शाचालक में एक गरीब व्यक्ति के हृदय में समाहित देशभक्ति का भाव और आस-पासकेजीव-जंतु से प्रेम और उनका हमारे प्रति समर्पण भाव को *पशु पक्षी हमारे संगी साथी* के माध्यम से अंत में दर्शाया गया है ।