साहिबान के हुज़ूर में हाज़िर है,नवरत्नों और चौदह अन्य रत्नों के संगम से निर्मित ऐसा संकलन जिसकी एक एक कहानी को चुनने में, उसे तराशने में खादिम की आंखों की रौशनी को भी झिलमिल होना पड़ा और परिणाम सामने है। वो कहानी जो अधूरी रह गई थी वो इस प्रकार पूर्ण हुई। आरंभ में इस संकलन का विचार दूर दूर तक न ही मेरे ज़हन में था और न ही प्रगति के ज़हन में। कारण था समयाभाव। जो कि कम से कम मेरे पास तो नहीं ही था। और ये टाइटल मेरे ज़हन में हाल ही में उपजा था जिस पर एक विस्तृत उपन्यास लिखने का मैने मन बनाया तो, परंतु हाल ही में मेरे कुछ अन्य विस्तृत उपन्यासों को लिखने के कारण मुझे ये साफ महसूस हो रहा था कि अगर इस टाइटल पर अगर मैने कभी उपन्यास लिखा भी तो उसमें कम से कम तीन साल इसके आरंभ होने में और फिर आगे दो साल और इसे पूरा करने में लगने एक आम सी बात होती।