तुम्हारे शब्द...(१)
जब भी मैं अपने लक्ष्य से
दिग्भ्रमित हो जाती हूं,
तुम्हारे तीखे -कड़वे शब्द
मुझ पर प्रहार करते हैं।
इसलिए नहीं कि मैं अपने
पथ से विमुख हो जाऊं,
वह शब्द लक्ष्य के लिए
अग्रसर रहने को कहते है।
जब भी कभी मैं गुमसुम
सी उदास होती हूं,
तुम्हारे शब्द गुलमोहर
के फूल से लगते हैं।
कभी -कभी मेरे अक्षुनीर
जब मेरे होंठों को छूते हैं,
तुम्हारे तीखे शब्द समुंदर के
लहरों से प्रतीत होते है
तुम्हारे तीखे शब्द मुझे
बार-बार प्रोत्साहित करते है,
कहते है अपने लक्ष्य को
प्राप्त कर अभी मत रुक!
तुम्हारे एक-एक शब्द मेरे
अंतर्मन को झकझोरतें है
तब आकाशगंगा सी प्रतीत
होता है हृदय की वेग भी।
तुम्हारे शब्द कड़वे ही सही
परंतु सार्थक होतें है,
जीवन के विभिन्न पहलुओं
को बतलातें है ।