एक गधे की आत्मकथा लेखक- कृशन चंदर विधा- व्यंग्य इस उपन्यास का मुख्य पात्र एक बोलने वाला गधा है। उपन्यास की पटकथा गधे की नज़रों और शब्दों से देखने और सुनने को मिलती है। गधे के साथ हो रही विभिन्न घटनाओं की मदद से लेखक ने उस समय (जब यह उपन्यास रचा गया था) के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सत्तावदी व्यवस्था पर कटाक्ष किया है। कटाक्ष इतना सटीक है कि वर्तमान परिस्थितियों को भी भली-भाँति दर्शाता है। कहानी का मुख्य पात्र गधा जो विभिन्न भाषाएँ बोल और समझ सकता है वह समाज के दोनों वर्ग ‘समझदार’ (पढ़ें-लिखें और सभ्य, भाषा और संस्कृति का ज्ञान रखने वाले) ‘मूर्ख’ (अशिक्षित, असभ्य और अज्ञानी) समझे जाने वाले मनुष्यों को दर्शाता है। गधा कहलाने वाला जानवर दरअसल हम मनुष्यों से कितना अलग, बेहतर और समझदार है ये उपन्यास के विभिन्न हिस्सों, घटनाओं, और बातों में समय-समय पर दिखाई देता है। अन्य किसी भी जानवर को छोड़कर गधे को नायक के रूप में चुनकर लेखक ने बड़ा ही साहसपूर्ण काम किया है। नायक जिस प्रकार नायक लिबास में मनुष्यों के दोगले व्यवहार, कटुता, पक्षपात को दर्शाता है वह पढ़ना बहुत ही रोचक है। लेखक ने बहुत ही सरल और सीधे तरीके से अपनी बात कहकर समाज के हर वर्ग से जुड़े व्यक्ति और व्यवहार पर चुटकी ली है। आप पूरा उपन्यास पढ़कर भी इसी पाशोपेश में रहेंगे कि ये आदमी के रूप में गधा है या गधे के रूप में आदमी। लेखक ने शुरुआत से अंत तक भाषा पर अपनी मजबूत पकड़ बनाये रखी है| भाषा सरल, सहज और स्वाभाविक (आम बोलचाल की)है। उपन्यास इतना सधा हुआ है कि पढ़ते हुए आँखें और हाथ थकते नहीं बल्कि आगे बढ़ते जाते है।